अमरनाथ गुफा में है ये दो रहस्यमय कबूतर, बहुत चर्चित है इनकी कहानी, जानिए कौन पंहुचा सबसे पहले अमरनाथ गुफा!

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दोस्तों भगवन शिव के लाखो करोडो अनन्य भक्त है जो उनको अलग अलग तरह से पुरे देश में अलग अलग जगह पर उनकी आराधना करते है, अमरनाथ गुफा भी भगवान शिव के सभी प्रमुख स्थलों में से प्रमुख है अमरनाथ गुफा हिन्दुस्तान के जम्मू कश्मीर में स्थित है। दुनियां के कोने कोने से बहुत सारे श्रद्धालु हर साल अमरनाथ गुफा का दर्शन करने आते है। पावन पवित्र अमरनाथ गुफा का दर्शन करना अपने आप में बहुत बड़ी बात है यहाँ जाने के बाद इंसान के सारे पाप और सारे दुःख मिट जाते है तथा मृत्यु के पश्चात् उस इंसान को स्वर्ग में स्थान मिलता है जम्मू कश्मीर में स्थित यह अमरनाथ गुफा बेहद प्राचीन है और रहस्यों से भरा पड़ा है। आज आपको बताते है अमरनाथ गुफा के ऐसे रहस्य के बारे में बता रहे है जिन्हें सुनकर आप अचम्भित हो जाएंगे। अमरनाथ का यह पवित्र गुफा श्री नगर शहर से 135 किलोमीटर की दूरी पर तथा समुद्र तल से 14 हजार फिट की ऊंचाई पर स्थित है। पवित्र गुफा की भीतरी गहराई 19 मीटर , चौड़ाई 16 मीटर तथा ऊंचाई 13 मीटर है।

बता दे की श्रधालुओं का ऐसा मानना है की कोई भी ऐसा इंसान अगर एक बार अमरनाथ गुफा के दर्शन कर लेता है तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है। इस अमरनाथ गुफा में एक शिवलिंग अपने आप बनता है। बर्फ की बारिश के बाद यह शिवलिंग अपने आप तैयार हो जाता है। जिसे देखने के लिए हिन्दुस्तान के साथ साथ दुनियां के बहुत सारे शहरो के लोग आते है। शिव भक्तों का ऐसा मानना है की यहाँ पर माता सती का कंठ गिरा था हिन्दुस्तान के सभी तीर्थ स्थलों में इसका एक अपना एक अलग ही महत्व है तथा अन्य किसी तीर्थस्थल पर जाने के मुकाबले इस तीर्थ धाम पर अगर आप आते है तो आपको हजार गुना ज्यादा फल प्राप्त होता है।

ऐसी मान्यता है की हजार वर्षों की तपस्या के बाद जो फल मिलता है वो सिर्फ अमरनाथ गुफा दर्शन मात्र से मिल जाता है। आपको बता दे की सबसे पहले इस इस गुफा को बूटा मालिक नामक गड़रिये खोजा था। बूटा मलिक नाम के एक गड़ेरिये ने इस अमरनाथ गुफा की खोज की थी ऐसी मान्यता है की बकरी चराते वक्त एक दिन वो गड़ेरिया काफी दूर निकल गया ! इस कारण वो जंगल पहुँच गया रास्ता भटक जाने के कारण वो जंगल में पहुँच गया था। एक सुनसान और वीरान स्थान पर वो बैठा हुआ था तभी साधू के भेस में एक इंसान वहां आया और उसने उस गड़ेरिये को एक लकड़ी दी तथा सही मार्ग बताकर उसे घर की तरफ भेज दिया। जब वो गड़ेरिया घर पहुंचा तो वो लकड़ी हीरे के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी उसकी ख़ुशी का ठीकाना नही रहा और वो ख़ुशी के मारे नाचने लगा मगर जब वो उस स्थान पर वापस जिज्ञासा लेकर आया जहाँ उसे वो साधू मिले थे वहां पर कोई भी नही था जब वो आया वहां पर तो एक शिवलिंग वहां पर बना हुआ था इसलिए ऐसी मान्यता है की इस स्थान पर आने वालो को भगवान भोले नाथ दर्शन देते है।

आपको बता दे की अमरनाथ गुफा के पास सिर्फ एक गुफा नही है बल्कि अमरावती नदी के पास से जब आप गुजरते है तो कई छोटी छोटी गुफाएं आपको देखने को मिल जाएगी ऐसी मान्यता है की भगवान भोले नाथ ने माता पार्वती को अमर कहानी इसी स्थान पर सुनाई थी यहाँ पर जो भी श्रद्धालु पूजा करने जाते है तो उनको कबूतर का एक जोड़ा दिखाई पड़ता है ऐसी मान्यता है की यह जोड़ा कोई और नही है, बल्कि भगवान शंकर और माता पार्वती जी है और जिस को भी यह जोड़ा दिख जाता है तो वह धन्य हो जाता है उसे मोक्ष मिल जाता है।

पुराणों के अनुसार एक बार देवर्षि नारद भगवान भोले नाथ से मिलने कैलाश पर्वत पर गए परन्तु भोले नाथ वहां पर नही थे वहां पर सिर्फ माता पार्वती बैठी हुई थी। भगवान भोले नाथ किसी और स्थान पर गए हुए थे। दरअसल नारद जी एक खास जिज्ञासा को लेकर कैलाश पर्वत पर गए हुए थे। उनको भगवान भोले नाथ से यह पूछना था की वो अपने गले में मुंड माला क्यों पहनते है ? जब यह सवाल उन्होंने माता पार्वती से किया तो माता पार्वती ने यह कह करके कोई उतर देने से इनकार कर दिया की उन्हें भी पता नही है की भोले नाथ गले में मुंड माला क्यों पहनते है। जब भगवान भोले नाथ वापस आए तो माता पार्वती ने उनसे पूछा की हे भोलेनाथ आप अपने गले में मुंड माला क्यों पहनते है। तब भोले नाथ ने उतर दिया हे देवी पार्वती तुमने जितनी बार मनुष्य का जन्म लिया है में उतनी संख्या का मुंड माला धारण करता हूँ फिर पार्वती जी ने पूछा हे स्वामी मेरा शरीर तो नस्वर है बार बार मृत्यु को प्राप्त होता है परन्तु आप तो अमर है मुझे इसका कारण बताइए ? भोले नाथ ने कहा हे देवी यह सब अमर कथा के कारण है इस पर पार्वती जी ने जिद किया की हे स्वामी आप मुझे भी अमर कथा सुनाएं।

भोले नाथ ने वर्षों तक टाल मटोल किया मगर अंत में विवश होकर उन्हें अमरकथा सुनाने के लिए हामी भरनी पड़ी। जैसा आप सभी भी जानते है अपने जीवन में पत्नी जब जिद पर आ जाती है तो पति को मानना ही पड़ता है। अब समस्या यह थी की अमरकथा आखिर सुनाई कहाँ जाए। जी हाँ क्योंकि गलती से किसी भी जीव के कान में या किसी शैतान के कान में , या किसी राक्षस के कान में अगर वो कथा पड़ जाती तो वो भी अमर हो जाता। भोले नाथ सोच में पड़ गए तो भोलेनाथ ने माता पार्वती को साथ लेकर के इसी अमरनाथ गुफा में पधारा।जी हाँ ! वो आए और उनको कथा सुनाई। ऐसी मान्यता है की रक्षाबन्धन वाली पूर्णिमा के दिन भगवान भोले नाथ स्वयम इस गुफा में पधारते है तथा इस अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा की जाती है।

इस अमरनाथ गुफा से सम्बंधित अमरेश महादेव की कथा भी बहुत ही प्रचलित है। इसके अनुसार आदिकाल में जब संसार की उत्पति हुई तब देवता , ऋषि , गन्धर्व , सर्प और राक्षसों की भी उत्पति हुई तब देवतागन मृत्यु के वश में पड़े हुए थे तब सभी देवता घबराकर भगवान भोले नाथ के दरवार में पहुंचे उन सभी को मृत्यु का डर सता रहा था। वो लोग डर के मारे भगवान भोले नाथ की स्तुति करने लगे तथा अपनी समस्या का निदान पूछने लगे। इस पर कृपालु भोले नाथ ने उतर दिया की मैं आप सभी की समस्याओं का निदान जरूर करूँगा। यह कहते हुए भगवान भोले नाथ ने अपने सर से चन्द्रमा की एक कला को उतारा तथा निचोड़ दिया उसके बाद उन्होंने देवताओं से कहा की हे।

देवगण ये आप सब के मृत्यु की ओषधि है उस चन्द्रकला को निचोड़ने के बाद उस चन्द्रकला से अति पवित्र अमृत की धारा बहने लगी तथा अमृत की बुँदे पृथ्वी पर गिरके सुख गई इस पावन गुफा में जो भस्म है वो इन अमृत बिन्दुओं के कण ही थे। भगवान भोले नाथ द्रवीभूत हो गए तथा देवताओं से कहा हे देवगण आपने इस गुफा में मेरा शिव स्वरूप यानी लिंग स्वरूप दर्शन किया है इस बजह से आप सब को मृत्यु का भय अब कभी भी नही सताएगा। आप सभी शिव स्वरूप को प्राप्त होंगे तथा अमर हो जाएंगे। भगवान भोले नाथ ने कहा मेरा यह लिंग स्वरूप तीनो लोको में अमरेश महादेव के नाम से प्रसिद्ध होगा। भगवान भोले नाथ ने देवताओं के भय का नाश किया। तब से उनका नाम अमरेश महादेव हुआ।